कहानी है एक आठ वर्षीय लड़के 'प्रथम' की, जिसके माँ बाप के बीच हमेशा तनाव और झगडे का माहौल बना रहता है। इसलिए उसने अपनी वास्तविक दुनिया से परे एक अलग दुनिया इजात की है खुदके लिए, यह दुनिया उसकी कल्पना की दुनिया है। यह दुनिया स्वाद में थोड़ी अलग है, इसके नियम कोई नहीं जानता और यहाँ पे चीज़ों के आकार और अंदाज़ थोड़े निराले है। मंदिर पे बैठा बन्दरों का एक समूह प्रथम को दिखता है एक बारात का बैंड, उसके पिताजी उसे नज़र आते है बिजली की तारों का एक गुच्छा और रसोई में जब उसकी माँ खाना बनाते हुए गुनगुनाती है तो उसे लगता है के रसोई के अंदर बर्फ गिर रही है उसकी माँ के गाने से। मगर किसी कारण से उसे राजस्थान में अपनी नानी के घर जाना पड़ता है और उसी दौरान उसकी कल्पना की दुनिया असल दुनिया से उलझने लगती है। गाँव की दुनिया, रेत, रेगिस्तान, नज़ारें, नाचते मोर और गाते लोक कलाकार यह सब प्रथम को रिश्तों, एहसासों और उसकी खुदकी पहचान के बारे में बहुत कुछ सीखा जाते है।
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आदित्य गर्ग एक थिएटर कलाकार है और पीछे 9 वर्षों से मुंबई और बैंगलोर में काम कर रहे है। सन 2012 से आज तक उन्होंने कईं नाटकों में अभिनय और लेखन किया है, अथवा कुछ फिल्मों में लिरिक्स भी दी है। उनका जन्म राजस्थान के 'किशनगढ़' कसबे में हुआ था और पढाई अजमेर में। 'मृगतृष्णा' उन्होंने उस समय को याद कर के लिखी है जब हमारे जीवन में टेक्नोलॉजी इतनी गहरायी से नहीं समायी थी। जब रातें तारों के नीचे बीतती थी और मिट्टी के मटकों में से पानी पिया जाता था, जब दूर रह रहे दोस्तों को चिट्ठी लिख कर भेजा करते थे और बिजली जाने पर छुपन छुपाई खेला करते थे।
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