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प्रस्तुत शोध ग्रन्थ मिर्जापुर जिले के कोल आदिवासी समाज के प्रागैतिहासिक काल से वर्तमान काल तक की परिस्थितियों का तथ्यात्मक वर्णन है। कोल एक मूल शब्द है प्राचीन काल में भारत को कोलारिया देश के नाम से जाना जाता था। यहाँ रहने वाले मानव को कोल कहा जाता था। इस कोली भूमि के आज भी कई स्थानों के नाम कोल आधारित है जो इनके आधिपत्य की पुष्टि करते हैं। एक समय ऐसा भी था इतिहास में जब इन्होनें अपने कौशल और मेधा के बल पर राज्यों की स्थापना कर शासन किया। मध्यकाल में कोल आदिवासी समाज को अस्पृश्य घोषित कर समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। औपनिवेशिक काल में औपनिवेशिक भू एव वन नीतियों ने आदिवासी समाज के स्वतंत्र एकाकी जीवन में घुसपैठ कर भूमि एवं वनों पर उनके एकाधिकार को छीन कर उन्हें विद्रोह करने पर विवश किया। वही आजादी के बाद भारत सरकार द्वारा बनाये गये भू एवं वन नीतियों ने उन्हें कोई राहत नहीं दी क्योंकि सत्ता बदली थी, शासन करने वाले की नियत नहीं। आजादी के बाद कोल आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति से अनुसूचित जाति में परिवर्तित कर सरकार द्वारा उनके मूलनिवासी होने पर सवाल खडा कर दिया है। वे आज भी अपने अस्तित्व के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

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डाॅ. सुधा सोनकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में सामाजिक विज्ञान संकाय के इतिहास विभाग में भारतीय  सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्धारा प्रदत्त पोस्ट डाॅक्टोरल पद पर प्रो. अजय प्रताप के निर्देशन में कार्यरत है। इनका जन्म 12 जुलाई 1983, लहरतारा वाराणसी, उ.प्र. में हुआ। इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय से इतिहास मे बी.ए. (आॅनर्स), सामाजिक विज्ञान संकाय, इतिहास विभाग से एमए और पीएचडी की शिक्षा पूर्ण की है। यूजीसी नेट 2007, 2012, 2014 में उत्तीर्ण की है। आदिवासी इतिहास पर इनके द्वारा लिखित सात शोध पत्र विभिन्न शोध पत्रिकाओं में एवं तीन अध्याय किताबों में प्रकाशित हो चुके है। साथ ही इनके आदिवासी इतिहास लेखन को लोक कला एवं जनजाति कला एवं संस्कृति संस्थान उत्तर प्रदेश लखनऊ द्वारा 2016 में सम्मानित किया जा चुका है।

Mirzapur Kshetra Ke Adivasiyon Ka Itihas (1784-2000)

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