इस उपन्यास की पृष्ठभूमि प्राचीन भारत के स्वर्णिम काल कहे जाने वाले गुप्त राजवंश के शासनकाल पर आधारित है। भारत सम्राट समुद्रगुप्त का अग्रज पुत्र रामगुप्त, युद्ध से बचने के लिए अपनी धर्मपत्नी महादेवी ध्रुवस्वामिनी को शत्रु शिविर में भेजने के प्रस्ताव को स्वीकार कर, शकराज राजा रुद्रदमन के समक्ष घुटने टेक देता है। इस से आहत ध्रुवस्वामिनी अपने शील और सम्मान की रक्षा के लिए रामगुप्त के अनुज चंद्रगुप्त की सहायता लेती है और पितृसत्तात्मक समाज के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाती है। वह भरी सभा में अपने कायर पति का स्वामित्व मानने से इंकार देती है। अपने अधिकारों के हनन और संरक्षण के अभाव में ध्रुवस्वामिनी ऐसे पति को त्यागने में जरा भी संकोच नहीं करती ।
Mahadevi Dhruvswamini : Ek Ankahi Gatha
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