ʼझरनाʼ के काव्य संकलन में जीवन स्वरूप झरने की शीतलता और निरंतर प्रवाह लुभा लेता है। असल जीवन से प्रभावित कविताएं लिखी हैं जो हम सभी के जीवन का आईना सा लगती हैं। कविताओं की गहराई दिल को लेती हैं, उत्साह एवं उल्लास का अनुभव होता है। "कर्म के हस्ताक्षर हैं अनचाहे गांव" जैसी पंक्ति सामाजिक चेतना जगाती है। वहीं महिलाओं का सशक्त पक्ष रखती हैं उनकी कविताएं जैसे महाश्वेता देवी के लिए लिखा यह वाक्य "जैसे सौ सौ झरनों की भाषा कानों में कुछ कह, देती, व्योम भर उत्साह"। यह उनकी कविता "बेटी" में भी झलकता है। प्रकृति के चित्रण को बहुत ही सुंदर अलंकरण से पिरोया है। अभिव्यक्ति की बानगी तथा लेखन शैली का सौन्दर्य, कविता दर कविता पढ़ जाने को प्रेरित करता है।
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श्रीमती प्रभा श्रीवास्तव का जन्म 1941 में हुआ था। वह पहाड़ी शहर छिंदवाड़ा में पली-बढ़ीं। वे छिंदवाड़ा में उच्च विद्यालय में संस्कृत और गणित कॆ अध्य़ापन के लिए जानी जाती थीं। उन्होंने संस्कृत की स्नातकोत्तर की पढ़ाई सागर विश्वविद्यालय से की। सागर में संस्कृत के हेड डॉक्टर राम जी उपाध्याय से कविता को नई दिशा व प्रेरणा मिली। लेखन उनका जुनून है। सत्तर के दशक में उनकी कविताएँ आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित हुईं। उनकी कविताएं छायावाद से प्रेरित हैं। उन्होंने बड़ी हिम्मत के साथ गंभीर बीमारी का सामना किया - उसे रचना कार्य में बाधक बनने नहीं दिया। उनकी कविताएं उनके संवेदनशील हृदय, देश प्रेम, प्रकृति प्रेम, समाज सापेक्षता की प्रतीक हैं।
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