सविता जी की कविताओं में नारित्व के प्रति उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट परिलक्षित होती है। "स्वयं आधार होकर निराधार हो, सर्वांगीण भूमिका निभाने वाली ......" "कविता सरिता हो तुम" की ये पंक्तियाँ "भावुक न हो, नाजुक न हो खुलकर करो शक्ति का प्रयोग" कवियत्रि को क्रांतिकारी मन का भान कराती है। सविता जी एक कोमल हृदय की भी मलिका है। कविताओं में? ‘‘दर्द, ‘‘अकेला मन," "दुःख सुख" आदि में कवियत्रि ने अपनी भावनाओं को उजागर किया है। सविता जी की काब्य शैली, शब्दों की काब्यात्मक अभियंजना सराहनीय है। मेरी शुभकामनाएँ उनके साथ है। -- प्रज्ञा ऋचा (IPS)
Indradhanush (Hindi)
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