प्राचीन भारत के इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य प्रथम ऐतिहासिक सम्राट है। वह एक शक्तिशाली योद्धा ही नहीं अपितु एक कुशल प्रशासक व चतुर राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने भारत को विदेशी दास्ता से मुक्त कराया तथा वृहत्तर भारत का निर्माण किया जिसकी सीमाऐं ईरान की सीमाओं से मिली हुई थी। उनका सम्बन्ध प्राचीन मोरिय गण राज्य से था जो बुद्ध के काल में एक छोटा जनपद राज्य था। इस राज्य का निर्माण कपिल वस्तु गण राज्य के विनाश के बाद वहाँ के कुछ भागे हुए शाक्यों द्वारा हिमबन्त प्रदेश में एक नगर बसा कर किया गया था। चूंकि इस प्रदेश में मोरो(मयूरो) की अधिकता थी तथा प्रत्येक समय यह स्थान मोरो की प्रतिध्वनि से गुंजायमान रहता था, इसलिए इस प्रदेश के शाक्य ’मोरिय’, मौर्य कहे गये तथा यहाँ का राज्य ’मोरिय जनपद’ कहा गया। इस छोटे गण -राज्य को मगध के किसी नन्द वंश के राजा ने अपने अधीन कर लिया था। चन्द्रगुप्त इसी गणराज्य की विधवा महारानी का पुत्र था जो बाद में मगध का महान सम्राट बना। शाक्य, निर्विवाद रूप से इक्ष्वाकु कुल के सूर्यवंशी क्षत्रिय है; अतः चन्द्रगुप्त मौर्य भी क्षत्रिय ही है।’’
विदेशी लेखकों ने भी चन्द्रगुप्त (सैन्ड्रोकोट्स) को नन्द वंश से अलग वंश का बताया है। इसके अलावा ब्रिटिश काल में लिखे गये डिस्ट्रक्ट गजेटियर साफ तौर पर लिखते है कि ’मौर्य’ शाक्य जाति की एक उपजाति है तथा आपस में अन्र्तविवाही है। इनकी अन्य उपजातियाँ हैः कोयरी, हरदिया, सैनी आदि। ये जातियाँ शूद्र नहीं है अपितु प्राचीन क्षत्रिय-इक्ष्वाकु कुल की है। वर्तमान समय में वे अन्य पिछडे़ वर्ग की है।
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